Tuesday, August 27, 2019

एक तोहफा

रंजन को एहसास हो गया कि पैसो के दिखावे से आप अमीर नही हो जाते।

शाम के सात बच चुके थे और मै अपने बैंक से घर जा रहा था। मुझे इस शहर में ट्रांसफर होकर आये हुए सिर्फ एक साल ही हुआ था और सालभर ही हुआ था मुझे बैंक का मैनेजर बने हुए। इस पद पर अच्छी तन्खा तो मिलती है मगर साथ ही ख़ुशी इस बात की होती है कि आपका औंधा ऊँचा है और जब आप किसी को यह बताते है तो खुदपर गर्व होता है। मगर ज़्यादा ताकत के साथ जिम्मेदारियां भी बड़ जाती है। तो एक थका देने वाले लम्बे दिन के बाद मै अपनी मेंहगी गाड़ी , जो मैने कुछ ही समय पहले खरीदी थी पर आराम से घर लौट रहा था। बारिश का मौसम था। मैं पानी की बड़ी-बड़ी बूंदे साफ़ अपनी गाड़ी की कांच से देख सकता था। मुझे ख़ुशी थी कि मै पानी के रुकने का इंतज़ार किये बिना ही घर जल्दी पहुँच सकता था। और अपनी बीवी और चार साल के बेटे के साथ कुछ शांति के पल गुजार सकता था। जिंदगी ठीक चल रही थी। अच्छी नौकरी थी , अंजना के रूप खूबसूरत पत्नी थी ,बच्चा था और जिंदगी के सारे ऐसो आराम थे।

मै धीरे-धीरे चला जा रहा था कि तभी मेरी नज़र बस स्टैंड में अकेले खड़े एक आदमी पर पड़ी। जो वहाँ बेशक बारिश से बच कर, किसी बस का इंतज़ार कर रहा था। उसका चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा और कुछ ही लम्हो में मुझे उस चेहरे की पहचान हो गई। बस स्टैंड पर खड़ा आदमी मेरा कॉलेजमेट था , सालो बीत जाने के बाद भी आप अपने स्कूल और कॉलेजों के साथियों को पूरी तरह नही भूल पाते और मेरे कॉलेज के कुछ दोस्त तो इसी शहर में थे जो अक्सर हमारे घर आते थे या हम उनके घर जाते थे। 
तो बस स्टैंड पर खड़ा आदमी उदय था। मैने गाड़ी उसके पास रोकी, एक हॉर्न दिया और साइड गिलास को मेरे बाजु में लगे स्विच बोर्ड से नीचे किया। अब तक वो समझ चूका था कि यह सब उसके लिए ही किया जा रहा है। वो गाड़ी के पास आया , मैने पूछा 'तुम उदय होना!?'
उसने थोड़ी हैरानी से जवाब दिया ' हाँ , मगर आप को मैं पहचान नही पाया।'
नौकरी करते करते मै शायद खुदका ख्याल रखना भूल गया था क्योंकि मेरा वज़न बड़ गया था और सामने पेटी निकल गयी थी। मेरे लग-भग सभी दोस्तों का यही हाल था। मगर उदय वैसा नही था वो अभी भी काफी हद तक वैसा ही लगता था। 
'मै रंजन शर्मा, ब्राइट कॉलेज.... कुछ याद आया।' मैने कहा।
उसकी आँखे चमक गयी उसने कहा 'हाँ बिलकुल याद आ गया।'
'चल गाड़ी के अंदर आ जल्दी'
उसने तुरंत गेट खोला और गाड़ी में आकर बैठ गया। जब हम कॉलेज में थे तब उदय अक्सर मेरी और मेरे दोस्तों की फ़िरकी लिया करता था। हमारे पढ़ाकू होने पर हमें चिढ़ाता था। मगर आज समय अलग था मेरी पढाई की बदौलत मैने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था एक बड़े बैंक का मेनेजर होना कोई आम बात नही थी और उसके साथ उस पद की गरिमा को कायम रखना भी हर किसी के बस की बात नही होती। और रही बात उदय की तो उसे अक्सर पढाई में पटकनी खानी पड़ती थी। कॉलेज के प्रोफ़ेसर उदय और उसके जैसे अन्य लड़को को समझाते थे कि पढ़ाई को ऐसे मज़ाक में लोगे तो यह तुम्हे मज़ाक बना देगी। और आज प्रोफ़ेसर की बात मुझे सच ही दिखाई दे रही थी। मुझे पता था कि उसे जैसे तैसे कोई नौकरी मिल गयी होगी क्योंकि वो भी मेरी तरह मध्य-वर्गीय परिवार से आता था और मध्य-वर्गीय परिवार में पले लड़के के लिये नौकरी करना मज़बूरी भी होती है और जरूरत भी।
मैने पूछा 'इस शहर में कैसे आना हुआ और अभी किस साइड जा रहा है।'
'बस ऐसे ही यार , थोड़ा काम था और अभी होटल फ्लावर साइड जा रहा हूँ।'
होटल फ्लावर शरह का नामी होटल था , यह उन होटेलों में से था जहाँ अक्सर बड़ी बड़ी हस्तियां आया करती थी , अब बड़ा होटल होगा तो आस पास का इलाका भी भरा पूरा रहेगा। मै समझ गया कि इसे वही कुछ काम होगा।

' चल मै छोड़ देता हूं और सुना क्या कर रहा है आज कल।' मैने पूछा
उसने कहना शुरू किया 'बस यर लगे है अपने काम मे।'
'किस तरह के का काम?'
उसने कहा ' ऐसे ही न यार , तू बता कैसा चल रहा है सब , दिखने में तो बहुत फॉर्मल लग रहा है'
उसका जवाब काफी था समझने के लिए कि उसके दिन अभी ठीक नहीं है। क्योंकि यह चीज़ उसे देखने से ही समझ में आ सकती थी। नार्मल जीन्स शर्ट और पैरों में चप्पलें। यह मेरे लिए काफी था जानने के लिए की उसके हालात कंगाली में गुजर रहे थे।
मैने गर्व से कहा 'हाँ यहाँ बैंक में मैनेजर हूँ, अभी बैंक से ही घर लौट रहा हूँ।'
उसके बाद थोड़ी और बातें हुई। मैने अपनी शादी और बच्चे के बारे में बताया तब उससे पता चला कि उसकी अब तक शादी नही हुई है। और उसके माँ-बाप भी कुछ समय पहले गुजर चुके है। सुनकर बुरा लगा की उसके परिवार जैसा कुछ बचा ही नही। मगर कैसे कोई लड़की अपना सारा जीवन अंधकार में बिताना पसंद करेंगी या कोई बाप अपनी बेटी को गलत आदमी के साथ बंधन में बांध सकता है।

उसके लिए दया तो आ रही थी मगर मैं इसमें कुछ नही कर सकता था। जब उदय के पास वक़्त था तब उसने उसका सही इस्तेमाल नही किया और यह कर्मा का ही खेल था जो उसे ऐसे पड़ाव पर लाया था। उदय उस वक़्त मेरी और मेरे साथियो की खिल्ली उडाता था। हमें कहता था कि मार्क्स से कुछ नही होगा। असली जिंदगी कॉलेज के बाद शुरू होगी। यही वजह थी उसके इन हालातों की। यह कर्मा का ही खेल था कि वो आज मेरी मेहनत से कमाये पैसो की गाड़ी में बैठा था। एक बैंक मैनेजर के बाजू में बैठा था। लोग जब मेरे बैंक में आते थे तो मेरे केबिन में हर कोई नही घुस पाता था। मगर यह मेरी जिंदादिली ही थी जिसने उसे गाड़ी में बिठा लिया था। बेशक वो होटल फ्लावर या उसके आस पास कोई काम की तलाश में आया था और मुझे बताना नही चाहता था। 

उसने मेरी तारीफ करते हुए कहा 'सही है यर तेरी जिंदगी भी'
मै उसके शब्दो में मेरी जैसी जिंदगी जीने का अरमान सुन रहा था।
मैने पूछा - ' बस स्टैंड पर क्या कर रहा था आज तो यहाँ बस वालो की हड़ताल है।'
उसने सफाई देना शुरू किया-'अरे नही यर , मेरे पास तो किसी और की बाइक थी असल में बारिश शुरू हो गयी इसलिए मैं वहाँ खड़ा इंतज़ार कर रहा था.....'
उसके आधे वाक्य ने ही मुझे उसकी बातें छोड़, मेरी आराम दायक गाड़ी की मन में तारीफ करने में मजबूर कर दिया। 

थोड़ी देर में हम वहाँ पहुँच गये जहाँ उसे उतरना था। मैंने उसका फ़ोन नंबर लिया और उसके फ़ोन पर रिंग दी मगर उसने अपनी जेब से फ़ोन नही निकाला और मुझे कह दिया की वो मेरा नंबर सेव करलेगा। वो मुझसे अपने हालात छुपाने की लगातार कोशिश कर रहा था। 
घर जाकर में मैने सारी बातें अंजना को भी बताई, उसे भी उदय के लिए बहुत बुरा लगा। मगर एक बात जिसका मुझे गमंड था वो यह की अंजना के आने के बाद मेरी जिंदगी काफी बदल गयी थी। क्योंकि शादी के बाद मेरे ऊपर जिम्मेदारी आ गयी जिसने मुझे आगे बढ़ने के लिए मजबूत और मजबूर दोनों किया।


दो हफ्ते बीत गए और अब मेरे बेटे का पांचवा जन्मदिन आने वाला था अंजना की बहुत इक्छा थी की हम मेरे बेटे का जन्मदिन बहुत अच्छे से मनाए और सभी लोगो को बुलाये। अंजना ने कहा की हमें होटल फ्लावर में उसका जन्मदिन सेलिब्रेट करना चाइए। होटल फ्लावर बहुत बड़ा था और उसके खर्चे भी वैसे ही थे मगर आपको आपके स्टेटस के लोगो के साथ रहना है तो वैसा खर्चा और दिखावा भी करना पड़ता है और महिलाएं इसमें ज्यादा आगे रहती है। फिर मैंने भी सोचा की मेरे और अंजना के दोस्त होंगे , बैंक के लोग होंगे तो उनके सामने एक अलग ही ठाठ होगी। तो हमने होटल फ्लावर बुक करवा लिया। और सभी को नेवता (इनविटेशन) दे दिया। उदय हो भी मैने फ़ोन किया और उसे भी बुलाया। पहले सोचा था वो क्या करेगा क्योंकि वह सब हाई- प्रोफाइल लोग आने वाले थे फिर लगा की नही शायद उसके काम का कोई इंसान यही मिल जाये।

जन्मदिन वाला दिन भी आ ही गया। हमे शाम को होटल पहुँचना था। मेरे और अंजना के परिवार से सभी लोग आये थे। अंजना सब कुछ परफेक्ट चाहती थी। उसने मुझे पहले ही कह दिया था कि अगर उदय आये तो उससे ज़्यादा बात न करूं। 
होटल जाते वक़्त मुझे लग रहा था कि कही उदय इसी होटल में कुछ काम तो नही कर रहा। इन होटेलों में तो मेनेजर के लिए भी होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया होने की मांग होती है। मुझे लग रहा था कि कही उदय हमें वेटर की पोशाक में न मिले। पर कही न कही मेरी इक्छा थी मै उसे वैसे देखूं जिससे मेरे सामने पढाई न करने के अंजाम का एक जीता जागता उदाहरण मिल जाये। 
उदय वहाँ काम नही करता था क्योंकि आधी पार्टी तक वो दिखा ही नही था। मगर वो आधी पार्टी के बात आया। मेरे बेटे को बधाई भी दी। मगर गिफ्ट के नाम पर उसने कुछ नही दिया और न मैने उससे कुछ उम्मीद की थी। कैसे वो कोई गिफ्ट दे पता , जितने भी लोग आये थे सभी ने अपने साथ बड़े बड़े तोफे लाये थे। और इंवेलोप(लिफाफे) में भी हज़ार रूपए से किसी ने कम नही दिया था। और अब वो जमाना भी चला जब आप 100 रुपयो के लिफाफे में सारा परिवार खाना खा ले। सब से मिलकर वो थोड़ी देर में ही चला गया। मेरे कॉलेज के दोस्तों को मै पहले ही उसके हाल सुना चूका था इसलिए उन्होंने भी उससे कुछ न पूछा।

पार्टी लग-भग ख़त्म हो चुकी थी सब ने होटल और खाने की बहुत तारीफ की। कुछ दोस्त पूछ रहे थे कि कितना खर्च आया और अपना अपना अनुमान लगा रहे थे। अंजना भी बहुत खुश थी क्योंकि खाने और होटल के अलावा उसकी ड्रेस की भी बहुत तारीफ हुई थी। मेरी बीवी सही कहती थी की जब तक आप लोगो को अपना पैसा दिखाओगे नही तो लोग मानेंगे नही। मै यह जनता था कि अगले हफ्ते तक बैंक में इसी पार्टी की बात होगी।

तो मै कुछ दोस्तों के साथ बाकि बची पेमेंट देने के लिए बड़ा। थोड़ी पेमेंट एडवांस के टाइम हो गयी थी अब बाकि बचे पंद्रह हज़ार देना था। मैं मेनेजर के काउंटर पर दोस्तों को लेकर पंहुचा। मुझे देख नौजवान मेनेजर फट से खड़ा हुआ और एक इंवेलोप देते हुए कहा यह आपके बेटे के लिए होटल की ओर से गिफ्ट। मैने वो कार्ड लिया और मेनेजर से बचे हुए अमाउंट का हिसाब माँगा, उसने कहा सर आप इंवेलोप तो ओपन कीजिये। मै जनता था कि इंवेलोप के अंदर एक ग्रिटिंग होगी क्योंकि यह होटल की मार्केटिंग के अलग अलग फंडे होते है। तो मैंने इंवेलोप खोला और एक ग्रीटिंग निकाली। उस ग्रीटिंग को पढ़ कर में पूरी तरह से शून्य हो गया।

वो ग्रीटिंग में मेरे बच्चे के भविष्य के लिए बहुत सारी शुभकामनाये थी, और साथ में गिफ्ट के रूप में बची हुई पेमेंट माफ़ कर दी गयी थी। उस कार्ड के अंत में लिखा था ' फ्रॉम उदय, चेयरमैन फ्लावर होटल'।

मैने मेनेजर की ओर देख कर पूछा 'यह क्या है।'
उसने कहा 'सर को लेट हो रहा था तो उन्होंने मुझे ही यह दे दिया।'
मै सकते में था। और पूछने पर उसने बताया कि कुछ महीनो पहले ही उदय ने वो होटल खरीद लिया था। और उसके पास देश भर में और भी होटल है।
मैने पूछा- 'मगर उस दिन वो बस स्टैंड पर खड़ा था। और मैंने ही उसे लिफ्ट.....'
मेरे वाक्य के ख़त्म होने से पहले ही मेनेजर बोला 'हाँ सर ने वो बात बताई थी, दरअसल उस दिन सर काफी टाइम बाद आये थे। थोड़े फ्री थे तो मेरी बाइक लेकर घूमने निकल गए थे फिर बारिश आ गयी। हालांकि मैने उनके लिए गाड़ी पहुँचवा दिया था मगर उन्होंने कहा कि बहुत समय बाद कोई पुराना साथी मिला था इसलिए वो आपके साथ आ गए थे।'

लगातार मुझे झटके पर झटके मिलते जा रहे थे और मेरे साथ खड़े बाकि लोगो को भी।
मैने पूछा की उदय अभी कहाँ है तो उसने बताया कि उदय की फ्लाइट थी और उसे मीटिंग में भी जाना था तो वो निकल गया है।

मैने उसके बारे में क्या सोच था और वो क्या निकला। मुझे खुदपर शर्म आ रही थी। जिस जिंदगी को लेकर मै खुदपर नाज़ कर उसे नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा था असल में यह सब उसके सामने कुछ नही था उसने तो मेनेजर को होटल की पेमेंट लेने तक के लिए मना कर दिया था। 
खुदकी इस्थिति पर मुझे दया आने लगी थी इन थोड़े से पैसो से में अपने दोस्तों और रिस्तेदरों पर ही घमण्ड दिखाने निकला था और मै ही चूर चूर हो चूका था। और एक तरफ उदय जो एक अच्छी और सिंपल लाइफ जी रहा था। मुझे भी तोफा मिला था। जो एक सिख थी कि 'दिखावे की जिंदगी ज्यादा नही चलती।'

एक तोहफा

रंजन को एहसास हो गया कि पैसो के दिखावे से आप अमीर नही हो जाते। शाम के सात बच चुके थे और मै अपने बैंक से घर जा रहा था। मुझे इस ...